समन का करें सम्मान कोर्ट से किसी के लिए भी समन आ सकता है। कई बार लोगों को घबराहट होती है कि पता नहीं क्यों उसे कोर्ट से बुलाया जा रहा है। कई बार समन को लोग रिसीव करने तक से कतराते हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं है। समन से मतलब होता है कि कोर्ट में बयान के लिए जाना है : वक्त पर कोर्ट जाना जरूरी जब कोई वाकया होता है या फिर सड़क पर कोई घटना होती है और हम उस दौरान पुलिस के सामने बयान दर्ज कराते हैं तो पुलिस सरकारी गवाह बना सकती है या फिर कोर्ट को लगता है कि किसी मामले में जस्टिस के लिए जरूरी है कि अमुक व्यक्ति का बयान होना चाहिए तो उसे बयान के लिए कोर्ट से समन जारी किया जाता है। समन को रिसीव कर उसमें बताई गई तारीख और समय पर कोर्ट में जाना जरूरी है, इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है। कोर्ट में दर्ज कराना होता है बयान पुलिस जब मामले की छानबीन कर रही होती है तो वह गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा-161 के तहत दर्ज करती है। इस दौरान वह सरकारी गवाहों की फेहरिस्त बनाती है और एक-एक कर उन गवाहों के बयान दर्ज करती है। पुलिस उस वक्त गवाह का नाम और पता लिखती है और उसके द्वारा दी गई जानकारी को लिखती है। इन तमाम जानकारियों और साक्ष्य के आधार पर चार्जशीट दाखिल करती है और फिर उन गवाहों को कोर्ट बयान के लिए बुलाती है। पुलिस की ओर से उन तमाम गवाहों को पेश किया जाता है, ताकि वह अपना पक्ष साबित कर सकें। जब चार्जशीट के आधार पर आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम हो जाते हैं तो अभियोजन पक्ष यानी सरकारी पक्ष को तमाम गवाहों को एक-एक कर पेश करना होता है और इसके लिए कोर्ट उन गवाहों के नाम समन जारी करती है, ताकि वह गवाह कोर्ट में बयान दर्ज कराए। कोर्ट में जब गवाह बयान देता है तो वह शपथ के साथ बयान देता है। समन बनाम साक्षी या ... जब भी किसी को समन मिलता है तो उसके ऊपर लिखा होता है समन बनाम साक्षी या फिर लिखा होता है समन बनाम अभियुक्त। जब समन पर लिखा हो कि समन बनाम साक्षी इसका मतलब है कि आपको बतौर गवाह कोर्ट में बयान के लिए बुलाया जा रहा है। साथ ही कई बार समन के ऊपर लिखा होता है समन बनाम अभियुक्त। कई बार तो पहले से पता होता है कि अमुक मामले में समन पाने वाला आरोपी है। लेकिन कई बार सड़क हादसे आदि के मामले में समन पाने वाले को पता भी नहीं होता कि वह अमुक मामले में आरोपी है। ऐसी स्थिति में उसे कोर्ट जाकर अपना स्टैंड साफ करना होता है। अगर पेश न हों तो हो जाता है वॉरंट अगर समन के बावजूद कोई गवाह कोर्ट न जाए तो उसके नाम वॉरंट जारी होता है। कोर्ट से जारी समन पर तमाम डिटेल होता है मसलन किस कोर्ट में कहां और कब पेश होना है। अगर समन रिसीव करने के बाद भी कोई गवाह बयान के लिए नहीं जाता तो उसके नाम जमानती वॉरंट जारी हो जाता है और अगर फिर भी वह पेश न हो तो उसके नाम गैर जमानती वॉरंट जारी हो सकता है। जानबूझकर अगर कोई कोर्ट में पेश न हो तो गैर जमानती वॉरंट जारी होने के बाद उसके खिलाफ कार्रवाई होती है। पेशी से मिल सकती है छूट अगर कोई गवाह ऐसा है जिसे समन मिला हो और वह कोर्ट में किसी ऐसे कारण से पेश नहीं हो पा रहा है जो टाला नहीं जा सकता है तो उसे कोर्ट को इस बारे में अपने वकील के माध्यम से बताना होता है। मसलन अगर गवाह उस वक्त बीमार हो जाए तो उसे कोर्ट में मेडिकल सर्टिफिकेट आदि पेश करना होता है और कोर्ट से पेशी से छूट की गुहार लगानी होती है और फिर कोर्ट गवाह को पेशी से छूट देकर अगली तारीख लगा देता है। कई बार पुलिस द्वारा रास्ते में ट्रैफिक चालान आदि भी काटा जाता है और कोर्ट में पेशी के आदेश होते हैं तब भी तय तारीख पर कोर्ट में पेश होना जरूरी है अन्यथा एमवी एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है। गवाह जब कोर्ट में पेश होता है तो उसके आने-जाने का खर्चा सरकार वहन करती है। जब कोई गवाह कोर्ट में आता है और उसका बयान दर्ज हो जाता है तो वह जिस जगह से कोर्ट बयान के लिए आया है वहां से आने-जाने का खर्च सरकार देती है। इसके लिए पेशकार चालान बनाता है और उसमें तय रकम दिया जाता है। नजारत ब्रांच अथवा ट्रेजरी से वह रकम गवाह को दी जाती है। अगर गवाह सरकारी कर्मचारी है तो उसे कोर्ट में बयान के लिए जाने के दौरान ऑफिस से इजाजत मिलती है। संबंधित अधिकारी इसकी इजाजत देते हैं और इस दौरान उसकी छुट्टी काउंट नहीं होता। एक पोस्ट के माध्यम से पूरी विस्तृत जानकारी दे पाना पॉसिबल नही है। फिर समझने के लिए पर्याप्त है धन्यवाद __________________________________________ Allahabad High Court HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD Advocate C.Singh 9140976573 __________________________________________

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